Agitation of Bharat Mukti Morcha and Bahujan Kranti Morcha in Nagpur

Agitation of Bharat Mukti Morcha and Bahujan Kranti Morcha in Nagpur

भारत मुक्ति मोर्चा और बहुजन क्रांति मोर्चा का आरएसएस के मुख्यालय पर पूर्व आयोजित मोर्चा आरएसएस के इशारे पर काम करने वाले पुलिस प्रशासन और हाई कोर्ट को षडयंत्र पूर्वक गुमराह करने की वजह से नहीं हो पाया.

नागपुर : भारत मुक्ति मोर्चा और बहुजन क्रांति मोर्चा का आरएसएस के मुख्यालय पर पूर्व आयोजित मोर्चा आरएसएस के इशारे पर काम करने वाले पुलिस प्रशासन और हाई कोर्ट को षडयंत्र पूर्वक गुमराह करने की वजह से नहीं हो पाया. जिसकी तैयारी कई दिनों से चल रही थी. दरअसल, ये मामला तब शुरू हुआ जब भारत मुक्ति मोर्चा और बहुजन क्रांति मोर्चा की ‘डीएनए’ परिषद’ को आरएसएस के इशारे पर हरियाणा की भाजपा सरकार ने रोकने का प्रयास किया था. भारत मुक्ति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष वामन मेश्राम ने उसी वक्त आरएसएस के मुख्यालय पर मोर्चा लेकर जाने का ऐलान कर दिया था. वह डीएनए परिषद हो गई और करोड़ों लोगों तक उसकी जानकारी भी पहूंच गई. तभी से नागपुर के संघ मुख्यालय पर मोर्चे की तैयारी चल रही थी.


सूत्रों के अनुसार, भारत मुक्ति मोर्चा और बहुजन क्रांति मोर्चा ने इसके लिए जो पत्रक निकाला था इसमें 13 मुद्दें थे, जिसमें प्रमुखता से बीजेपी-आरएसएस का संविधान द्रोह, यूपी में भी भाजपा सरकार द्वारा संविधान द्रोह, बीजेपी-आरएसएस द्वारा मतों की चोरी करने के लिए किया जाने वाला ईवीएम का इस्तेमाल, ओबीसी की जाति आधारित गिनती न करना, संविधान बदलने की साजिश, आदिवासियों को जोर-जबरदस्ती से हिंदु बनाना. बहुजन समाज के इन तमाम मुद्दों को लेकर भारत मुक्ति मोर्चा और बहुजन क्रांति मोर्चा संघ मुख्यालय पर मोर्चा लेकर जाने वाले थे. जब पुलिस प्रशासन ने उन्हें अनुमति नहीं दी तब ये मामला बॉम्बे हाईकोर्ट कि नागपुर बेंच में पहुंचा. नागपुर बेंच में सुनवाई चल रही थी, उसी समय आरएसएस षडयंत्र करने में जुट गया. हाई कोर्ट में चल रही सुनावई के दौरान ही एड.मनोहर जो पुलिस की ओर से वह केस लड़ रहे थे, उनके पीछे संघ द्वारा चलाए जा रहे अधिवक्ता संघ के वकील खड़े थे. यह जानकारी हाई कोर्ट में भारत मुक्ति मोर्चा की ओर से केस लड़ने वाले वकीलों द्वारा प्राप्त हुई है. जानकारी में यह भी सामने आया कि एड.मनोहर ने मा.न्यायाधीशों को एक लिफाफा दिया और कहा कि ये गुप्त रिपोर्ट पुलिस प्रशासन की तरफ से दिया जा रही है. जिसे गुप्त रिपोर्ट कहा गया वह बंद लिफाफे में होना चाहिए था, मगर वह तो खुले लिफाफे में थी.


भारत मुक्ति मोर्चा के वकील एड.फिरदौस मिर्झा ने उस लिफाफे के अंदर दी गई रिपोर्ट की मांग की और कहा कि उसमें लिखी हुई बातों को जानना हमारा अधिकार है. इस पर जजों ने कोर्ट की कारवाई को 10 मिनिट के लिए स्थगित कर दिया और वह अपने चेंबर में गए. जाने से पहले भारत मुक्ति मोर्चा की तरफ से लड़ रहे वरिष्ठ वकील फिरदोस मिर्झा से जज ने कहा कि हम अभी आते है. इसका व्यवहारिक अर्थ यह था कि लिफाफे में जो लिखा है उस पर आपकी बात को सुना जाएगा. जो जज लिफाफा मिलने से पहले भारत मुक्ति मोर्चा के समर्थन में दिखाई दे रहे थे और भारत मुक्ति मोर्चा के वकीलों को भी ऐसा लग रहा था कि फैसला उनके पक्ष में ही होने वाला है, मगर जैसे ही जज अपने चेंबर से बाहर आ गए, वैसे ही उन्होंने भारत मुक्ति मोर्चा और बहुजन क्रांति मोर्चा की पीआईएल को खारिज कर दिया.

जिसे गुप्त रिपोर्ट कहा गया था और भारत मुक्ति मोर्चा के वकील को देने से इंकार कर दिया था, वही रिपोर्ट मीडिया वालों को दी गई. जिसके आधार पर सभी प्रमुख अखबारों ने खबरें छापी की भारत मुक्ति मोर्चा और बहुजन क्रांति मोर्चा को परमिशन नहीं दी गई. इस पर वामन मेश्राम ने कड़ी आपत्ति जताई और कई सारे सवाल खड़े कर दिए. जिसमें प्रमुख सवाल यह थे कि अगर वह रिपोर्ट गुप्त थी तो उसे मीडिया वालों को कैसे दी गई.और मीडिया वालों को दी गई तो उसी वक्त भारत मुक्ति मोर्चा के वकीलों को क्यों नहीं दी गई? मीडिया वालों ने लिखी हुई बातों के अलावा उस गुप्त रिपोर्ट में और क्या था? क्या उसके जरिए संघ परिवार ने न्यायाधीशों को धमकी देने का काम किया? जजों ने अपने फैसले का विस्तृत विवरण 3, 4 या 5 अक्टूबर को नहीं दिया, बल्कि 5 अक्टूबर के बुद्धिस्ट इंटरनेशनल नेटवर्क के 5वें राष्ट्रीय अधिवेशन में वामन मेश्राम ने इन सभी बातों को सिलसिलेवार बताने के बाद 6 तारीख को जजों ने मजबूर होकर अपना फैसले का विस्तृत विवरण दिया ऐसा लग रहा है. इससे भी ये सवाल उपस्थित हो रहा है कि क्या न्यायाधीशों को फैसला सुनाने के लिए भी धमकी दी गई? ये सारे सवाल अब लोगों में चर्चा का विषय बन गए है.


नागपुर बेंच का फैसला अपने विरोध में जाने के बाद वामन मेश्राम इस मामले को लेकर तुरंत ही सुप्रीम कोर्ट चले गए. हाई कोर्ट का फैसला अंतिम नहीं होता, उसके उपर सुप्रीम कोर्ट भी होता है. इसका व्यवहारिक अर्थ यह था कि वामन मेश्राम को हाई कोर्ट का फैसला मंजुर नहीं था. अभी उस केस पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट से पूंछा है कि किस आधार पर उन्होंने भारत मुक्ति मोर्चा और बहुजन क्रांति मोर्चा की सभा एवं   मोर्चा को रोकने का आदेश दिया है? सुप्रीम कोर्ट के कई सारे फैसले नागरिकों के मौलिक अधिकारों के समर्थन में है. इतना ही नहीं तो सुप्रीम कोर्ट के धारा 144 के विरोध में भी कई फैसले है, जिसका डर हमेशा पुलिस लोगों की आवाज दबाने के लिए दिखाती है.


सुप्रीम कोर्ट नागरिकों के विरोध करने के मौलिक अधिकार को मानती है, लेकिन बॉम्बे हाई कोर्ट के नागपुर बेंच ने उसके ठीक उलट निर्णय दिया है. जब की हाई कोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के उलट फैसले देने की कोई संवैधानिक मान्यता नहीं है और न ही ऐसा कोई चलन है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट को ये अधिकार है कि वह हाई कोर्ट के फैसले के विरोध में भी फैसले दे सकता है. हाई कोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को ध्यान में रखकर, उसी गाईड लाईन में निर्णय देने होते है, यह संवैधानिक बाध्यता है. ऐसे में अब हाई कोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के सवाल का जवाब देने में दिक्कत हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने जो सवाल हाई कोर्ट से पूछा उसका जवाब अभी तक हाई कोर्ट ने नहीं दिया, ऐसी जानकारी भी हमें मिली है.

पुलिस प्रशासन ने जो गुप्त रिपोर्ट हाई कोर्ट में पेश किया, जिसके आधार पर मीडिया ने खबरें चलाई, उसके अनुसार पुलिस ने हाई कोर्ट को गुमराह करने का काम किया. पुलिस ने कहा कि उनके पास पर्याप्त पुलिस बल नहीं है. जब कि 6 अक्टूबर को नागपुर में लगभग 8 हजार पुलिस फोर्स तैनात की गई थी. जिसमें पुलिस, एसआरपीएफ की 10 कंपनी, क्विक रिस्पांस टीम की 10 टुकडियां, सीआरपीएफ, आरपीएफ, गोंदिया जिले से वहां तैनात सीआरपीएफ, अमरावती से वहां का पुलिस बल, इ. फोर्स भारत मुक्ति मोर्चा और बहुजन क्रांति मोर्चा को रोकने के लिए बुलाई गई थी. इस पर वामन मेश्राम का कहना है कि ‘संघ मुख्यालय पर जा रहे मोर्चा को रोकने के लिए अगर इतनी फोर्स बुलाई गई थी, तो नागरिकों के विरोध करने के मौलिक अधिकार की रक्षा के लिए भी इतनी फोर्स लाई जा सकती थी.’ इसका यही मतलब है कि पुलिस ने हाई कोर्ट में झूठी रिपोर्ट पेश की और हाई कोर्ट को गुमराह किया.


उसी रिपोर्ट में पुलिस ने एक बात लिखी थी कि जो लोग दीक्षाभूमि पर आने वाले है, वह लोग ड्रैगन पैलेस देखने के लिए भी जाते है और वामन मेश्राम तथा उनके लोग ड्रैगन पैलेस पर जाने वाले लोगों को गुमराह करके संघ मुख्यालय पर लेकर जाने की साजिश कर सकते है. इसके जवाब में वामन मेश्राम ने कहा कि ‘उनका मोर्चा दीक्षाभूमि पर आने वाले लोगों के भरोसे पर नहीं है. उनके संगठन की ताकत देशव्यापी है और इस मोर्चे की तैयारी कई दिनों से चल रही थी, इसलिए उनके संगठन के नेटवर्क से ही कम से कम 1 लाख और ज्यादा से ज्यादा 5 लाख लोगों के आने की तैयारी थी. रही बात ड्रॅगन पैलेस पर जाने वाले लोगों की, तो ऐसी कोई मान्य परंपरा नहीं है कि जो लोग दीक्षाभूमि पर आते है वह ड्रैगन पैलेस देखने के लिए जाते ही है. जैसे हर साल 1 जनवरी को भीमा-कोरेगांव पर आने वाले लोग नजदीक छ.संभाजी महाराज की समाधि पर जाते ही है, वह एक मान्य परंपरा है.’


6 अक्टूबर को क्या हुआ?
भारत मुक्ति मोर्चा और बहुजन क्रांति मोर्चा का संघ मुख्यालय पर जो पूर्व निर्धारित मोर्चा 6 अक्टूबर को होने वाला था. पुलिस प्रशासन ने 5 अक्टूबर से ही कॉम्बिंग ऑपरेशन शुरू किया. कई सारे लोगों को देर रात को ही नोटीस दी गई, जिसमें लिखा था कि ‘मोर्चा होने वाला नहीं है और आप घर पर ही रहिए.’ 6 अक्टूबर को सुबह 10 बजे तक भारत मुक्ति मोर्चा और बहुजन क्रांति मोर्चा के लगभग 200 से ज्यादा नेतृत्व करने वाले लोगों को पुलिस ने डिटेन कर दिया. जिसमें भारत मुक्ति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष वामन मेश्राम, बहुजन मुक्ति पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष निशा मेश्राम, बहुजन मुक्ति पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव एड.राहुल मखरे और भारत मुक्ति मोर्चा के वरिष्ठ कार्यकर्ता पी.के.मेश्राम थे. वामन मेश्राम को डिटेन करने आई पुलिस ने गैर संवैधानिक तरीके से अपना काम किया. उसका वीडियो सोशल मीडिया पर उपलब्ध है.


पुलिस ने संविधान के मौलिक अधिकार आर्टिकल 21 का उल्लंघन करते हुए, पी.के.मेश्राम के घर में बिना उनकी अनुमति से घुसकर, बिना किसी नोटिस के वामन मेश्राम और उनके साथ तीन अन्य पदाधिकारी एवं कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया. जब पुलिस घर में घुसी तब वामन मेश्राम ने उनसे कहा कि पहले डिटेंशन के पेपर दिखाओ, तो पुलिस अधिकारी ने कहा कि हम अभी ला रहे है. इस पर वामन मेश्राम ने कहा कि ‘अगर तुम्हारे पास डिटेंशन करने का कागज़ होता तो तुम पहले ही लेकर आते, तुम्हारे पास गैरकानुनी तरीके से डिटेन करने का कोई अधिकार नहीं है.’ इस पर वह पुलिस अधिकारी चुप हो गया और अपने वरिष्ठ अधिकारियों को बुलाया.


वरिष्ठ पुलिस अधिकारी आने के बाद भी वामन मेश्राम एक ही बात कह रहे थे कि ‘डिटेंशन का कागज़ दिखाओ मै खुद तुम्हारे साथ आने के लिए तैयार हूं.’ तब तक पुलिस वालों ने अपना पैतरा बदला और कहा कि आप पुलिस थाने चलिए वहां आपको डिटेंशन का कागज़ दिया जाएगा. इससे यह साबित हो गया कि पुलिस गैरकानूनी तरीके से डिटेन करने का काम कर रही थी. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी कविता इसारकर कह रही थी कि सीआरपीसी की धारा 68 के तहत पुलिस डिटैन कर सकती है, इस पर एड.राहुल मखरे ने कहा कि सीआरपीसी संविधान या मौलिक अधिकारों से बड़ा नहीं है, सबसे महत्वपूर्ण भारत का संविधान है और उसमें भी मौलिक अधिकार सभी अधिकारों से बड़े है, जिस पर रोक लगाने के अधिकार सुप्रीम कोर्ट तक को नहीं है.

पुलिस के साथ चल रही बहसबाज़ी में पुलिस कह रही थी कि वह कभी भी कानून के बाहर जाकर काम नहीं करती, इस पर एड.राहुल मखरे ने तपाक से जवाब दिया कि 1 जनवरी 2018 को भीमा-कोरेगांव में जो दंगे हुए थे वह पुलिस ने ही करवाए थे. तब भी देवेंद्र फडणवीस ही राज्य के गृहमंत्री थे. एड.मखरे ने आगे कहा कि आपके डीसीपी पखाले कि क्रॉस उन्होंने ही ली थी. हाई कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस की अध्यक्षता वाली जांच समिती के सामने सबुतों के साथ आया हुआ है कि भीमा-कोरेगांव दंगें करवाने में पुलिस का भी बड़ा हाथ था. वामन मेश्राम ने भी कहा कि कई सारे हाई कोर्ट के फैसले पुलिस प्रशासन के विरोध में है. 1 अक्टूबर को ही सुप्रीम कोर्ट ने ‘एहतियाती हिरासत यानी डिटेंशन को व्यक्तिगत स्वतंत्रता का गंभीर हनन’ करार दिया है और यह संविधान के मौलिक अधिकारों के विरोध में भी है. इसके बावजूद नागपुर पुलिस ने आरएसएस के इशारे पर वामन मेश्राम को गैरकानूनी तरीके से हिरासत में लिया था.


वामन मेश्राम को हिरासत में लेने के बाद उनके कार्यकर्ता एवं समर्थक लाखों की संख्या में नागपुर के इंदोरा चौक में एकत्रित हुए थे और उन्होंने वहीं पर धरना प्रदर्शन शुरु कर दिया. वामन मेश्राम के समर्थक एक ही बात कह रहे थे कि उन्हें रिहा करों. इंदोरा चौक के साथ सारे नागपुर का माहौल गरमाया हुआ था. हजारों कि संख्या में पुलिस वहां तैनात थी, उनका पथ संचलन चल रहा था, यानि वे लोगों को ड़राने की कोशिश कर रहे थे. इसके अलावा पुलिस अपनी तैयारी के साथ इंदोरा चौक में आई थी. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक पुलिस ने आंदोलनकारियों पर आंसू गैस के गोले दागने की भी तैयारी की हुई थी. किसी भी वक्त लाठीचार्ज हो सकता था. आंदोलनकारियों का एक गलत कदम और पुलिसिया कार्रवाई शुरू हो सकती थी, लेकिन आंदोलनकारी अपने अनुशासन में रहकर घोषणाएं दे रहे थे. किसी प्रकार की हिंसा नहीं हुई. यह वामन मेश्राम ने अपने कार्यकर्ताओं को दिए हुए प्रशिक्षण का नतीजा था.


पर दुसरी ओर पुलिस प्रशासन का तनाव बढ़ रहा था. पुलिस से आंदोलनकारी नियंत्रित नहीं हो रहे थे और उन्हें नियंत्रित करने का काम केवल वामन मेश्राम ही कर सकते है, यह बात पुलिस प्रशासन के समझ में आने के बाद नागपुर के पुलिस कमिश्नर खुद वामन मेश्राम को मिलने सदर पुलिस थाने गए और उनसे कहा कि, ‘आपके लोगों को शांत करें, वे मानने के लिए राज़ी नहीं है. शांति प्रस्थापित करने के लिए आप एक वीडियो अपील जारी करें.’ इस पर वामन मेश्राम ने कहा कि ‘आपको ऐसा लगता है कि मेरे अपील करने से शांति प्रस्थापित होगी, तो मै वीडियो बनाने के लिए तैयार हूं. हम किसी भी स्थिती में हिंसा करने के पक्ष में नहीं.’ आगे वामन मेश्राम ने कहा कि, ‘आरएसएस चाहता है कि हमारा झगड़ा पुलिस के साथ हो, लेकिन हमारा दुश्मन पुलिस नहीं बल्कि आरएसएस ही है.’


लगभग 8 हजार के बल के साथ पुलिस नागपुर शहर में तैनात थी, इसके अलावा नागपुर के सभी एंट्री पर पुलिस खड़ी थी और मोर्चा के लिए आने वाली हर एक गाडी को वहीं पर रोक दिया जा रहा था. चूंकि नागपुर भारत का मध्य है और भारत मुक्ति मोर्चा की संगठन शक्ति सारे देशभर में है, इसलिए देशभर से लोग आंदोलन में शामिल होने आए थे. इतना ही नहीं तो भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम से भी लोग आए थे. भारत मुक्ति मोर्चा के हजारों कार्यकर्ताओं को नागपुर में आने से पहले ही पुलिस ने हिरासत में लिया था और एक-दो जगहों पर कार्यकर्ताओं के उपर लाठीचार्ज करने की भी जानकारी सामने आई है. हमें ऐसी भी जानकारी मिली है कि जिन लोगों को पुलिस ने 6 तारीख की सुबह हिरासत में लिया था उनके मोबाइल से उन्हीं के सोशल मीडिया अकाउंट से ऐसे मैसेज डालने के लिए जोर-जबरदस्ती की गई कि ‘मोर्चा कैंसिल हो गया है, सारे लोग अपने-अपने घर चले जाए.’ पुलिस का यह काम न केवल गैरकानूनी, गैर संवैधानिक बल्कि बहोत ज्यादा मानवी अधिकारों के विरोध में रहा.


5 और 6 अक्टूबर को नागपुर पुलिस ने 45 हजार से ज्यादा लोगों का डिटेंशन किया था, जिन्हें नागपुर के लगभग सभी पुलिस थानों में रखा गया था. यह आंकड़ा एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर हमें दिया है. 45 हजार लोग पुलिस ने अपने हिरासत में लिए. उससे कई गुना ज्यादा आंदोलनकारी इंदोरा चौक में डटे हुए थे. इसके अलावा जिन लोगों को पुलिस ने नागपुर में आने ही नहीं दिया, ऐसे लाखों कार्यकर्ता बृहस्पतिवार को भारत मुक्ति मोर्चा के आंदोलन में शामिल थे. इस तरह जितने लोगों के आने की उम्मीद जताई जा रही थी, उससे ज्यादा लोग संघ मुख्यालय पर भारत मुक्ति मोर्चा के प्रोटेस्ट में आए थे. वामन मेश्राम ने केवल 1 लाख लोगों को मोर्चा में शामिल होने का आवाहन किया था, लेकिन 2 से 3 लाख लोग आंदोलन में शामिल हुए थे. जिस उद्देश्य से आरएसएस के इशारे पर पुलिस ने वामन मेश्राम और उनके लोगों को रोकने की कोशिश की, उनका वह उद्देश्य विफल रहा.


वामन मेश्राम के डिटेंशन का वीडियो लाइव होने के कुछ ही मिनटों में पुलिस ने एमएनटीवी के पत्रकार संकेत कांबले और स्वप्निल नरांजे को हिरासत में लिया और उसे वह वीडियो सोशल मीडिया से डिलीट करने के लिए कहा, मगर खुद पुलिस ने ही उसे डिलीट कर दिया. लेकिन तब तक वह लाखों लोगों तक पहूंच चुका था और बहुजन समाज के अन्य मीडिया कर्मियों ने उसे अपने चैनेल तथा फेसबुक पेज पर अपलोड़ भी कर दिया था. जब एमएनटीवी के पत्रकारों से पुलिस अधिकारी नरुल हसन ने वीडियो डिलीट करने के लिए कहा तो हमने पूछा कि ‘संजय राऊत, नवाब मलिक, चंद्रशेखर रावण इनके डिटेंशन के भी वीडियो टीवी चैनलों ने 24 घंटे लाईव दिखाए, हमने वामन मेश्राम के डिटेंशन का वीडियो लाइव किया तो क्या हुआ?’ इस पर नरुल हसन ने कहा कि ‘आपने दिखाए हुए वीडियो से कानून व्यवस्था की समस्या पैदा हो जाएगी.’ इसका मतलब ये है कि पुलिस भी यह मानती है कि उन्होंने कानून के दायरे के बाहर जाकर काम किया है. इसका यह भी अर्थ है कि संघ परिवार से अगर कोई लड़ रहा है तो वह वामन मेश्राम के नेतृत्व में काम करने वाला भारत मुक्ति मोर्चा और बहुजन क्रांति मोर्चा ही है. वामन मेश्राम से ही शासन-प्रशासन खौफ खाता है, ऐसा ही दिखाई दे रहा है. अब तो वामन मेश्राम ने चार चरणों में देशव्यापी आंदोलन घोषित कर दिया है. ऐसे में देखना होगा कि आरएसएस वामन मेश्राम को कहां-कहां रोक पाता है.


इस तरीके की बहुत सारी जानकारी ब्राह्मण-बनिया मीडिया ने लोगों से छुपाने का काम किया और जो जानकारी दी वह गलत थी और गलत तरीके से पेश की गई. इसलिए हम सिलसिलेवार भारत मुक्ति मोर्चा और बहुजन क्रांति मोर्चा के नागपुर के आंदोलन

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