Dharmantar ke Pachas Varsh – Ek Samiksha

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धर्मान्तर के पचास वर्ष – एक समीक्षा 

लेखक – वामन मेश्राम 

पिछले ढ़ाई हजार साल का यह इतिहास कि आक्रमणकारी आर्य ब्राह्मणोें द्वारा भारत की मूलनिवासी प्रजा को गुलाम बनाकर उनके साथ अमानवीयता का व्यवहार किया गया। इस गुलामी से मूलनिवासियों को मुक्त करने का काम भारत के इतिहास में पहली बार तथागत बुद्ध ने किया। बुद्ध का आन्दोलन मूलत: ब्राह्मणों द्वारा निर्मित चातुर्वर्ण्य व्यवस्था के खिलाफ था। ब्राह्मणों के प्रत्येक तर्क का खंडन करते हुए इस व्यवस्था को जड़ से उखाड़ फेंकने का काम तथागत बुद्ध ने अपने समय में किया। समता, स्वतंत्रता, भाईचारा एवं न्याय पर आधारीत समाज तथा राष्ट्र का निर्माण करना, यह तथागत बुद्ध का मूल मकसद था। व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लड़ते समय बुद्ध ने विचारधारा को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करते हुए लोगों के विचारों में मूलभूत परिवर्तन लाने का काम किया, परिणामत: इस देश में सामाजिक क्रांति हुई। इस सामाजिक क्रांति को प्रतिक्रांति में परिवर्तित करने का काम ब्राह्मणों द्वारा पुष्यमित्र शुंग के माध्यम से शुरु किया गया। पूरे ढ़ाई हजार साल पश्‍चात डा.बाबासाहब अम्बेडकर के माध्यम से सन 1956 को अशोक विजयादशमी के अवसर पर नागपूर में बौद्ध धम्म की दीक्षा ग्रहण कर विद्यमान ब्राह्मणी व्यवस्था को करारी चोट पहुँचाने का प्रयास हुआ। बुद्ध के लक्ष्य को भारतीय संविधान के लक्ष्य के तौर पर शामिल करने का काम डा.अम्बेडकर ने किया।
अपने लाखों अनुयायियों को बौद्ध धम्म की दीक्षा देते हुए डा.बाबासाहब अम्बेडकर ने इस अवसर पर एक महत्वपूर्ण घोषणा की, कि मुझे समूचा भारत बौद्धमय बनाना है। इस घोषणा का वास्तविक अर्थ क्या है? क्या इसके पीछे कोई रणनीति थी? क्या जातिग्रस्त समाज को ध्यान में रखते हुए भारत का बौद्धमय बनाने का लक्ष्य पूरा हुआ? या अधूरा है? इस दिशा में अपने कार्य की समीक्षा करने की बजाए खूद को तथागत बुद्ध तथा डा.अम्बेडकर का अनुयायी कहलानेवाले परंपरावादी लोग लक्ष्य पूर्ति के लिए कार्य करने की बजाए प्रतिदिन बुद्ध की वंदना करने को ही आन्दोलन मानकर चलते हैं। केवल वंदना करने मात्र से भारत बौद्धमय बनाने का डा.अम्बेडकर का सपना साकार नहीं किया जा सकता। फिर यह लक्ष्य कैसे प्राप्त किया जा सकता है? भिक्खु संघ की क्या जिम्मेदारी है? बुद्धिजीवी वर्ग ने इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए क्या करना चाहिए? बाबासाहब ने अपने समय में कौन-सी रणनीति पर कार्य किया? आदि सवालों के जवाब ढूँढ़ने का प्रयास प्रस्तूत किताब के माध्यम से किया गया है।

-प्रकाशक

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